नवरात्रि के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करने की परंपरा है। शारदीय नवरात्रि में दूसरे दिन की पूजा 16 अक्टूबर, सोमवार को की जाएगी। पौराणिक ग्रंथों में मां दुर्गा के इस स्वरूप को भक्तों के लिए अनंत फलदायी बताया गया है। धार्मिक मान्यता है कि मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करने से जीवन में त्याग, सदाचार, संयम, त्याग और तपस्या की प्राप्ति होती है। ब्रह्मचारिणी का अर्थ है तप का आचरण करने वाली। मां ब्रह्मचारिणी अपने दिव्य स्वरूप में देवी ज्योतिर्मया और अनंत दिव्य हैं। माता रानी के दाहिने हाथ में जप की माला और बाएं हाथ में कमंडल है। आइए जानते हैं मां ब्रह्मचारिणी की कथा और उनकी उत्पत्ति के बारे में।
माँ ब्रह्मचारिणी की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार मां ब्रह्मचारिणी अपने पूर्व जन्म में पर्वतराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्मी थीं। मां ब्रह्मचारिणी ने भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या की थी। जिसके फलस्वरूप उन्हें पतश्चारिणी अर्थात ब्रह्मचारिणी कहा जाने लगा। कहा जाता है कि मां ब्रह्मचारिणी ने एक हजार वर्षों तक केवल फल और फूल ही खाए। यह भी माना जाता है कि मां ब्रह्मचारिणी ने लगभग 3 हजार वर्षों तक टूटे हुए बेलपत्र खाकर भगवान शिव की पूजा की थी। इसी क्रम में मां ब्रह्मचारिणी ने कई हजार वर्षों तक निराहार रहकर तपस्या की।
पौराणिक कथा के अनुसार कठोर तपस्या के कारण मां ब्रह्मचारिणी का शरीर क्षीण हो गया था. सभी देवताओं, ऋषि-मुनियों ने मां ब्रह्मचारिणी की तपस्या की प्रशंसा की और कहा कि ऐसी तपस्या आज तक किसी ने नहीं की है. ऋषियों ने कहा कि शीघ्र ही तुम्हें (मां ब्रह्मचारिणी) भगवान शिव पति के रूप में प्राप्त होंगे। इतना कहने के बाद और देवता के अनुरोध पर मां ब्रह्मचारिणी ने अपनी कठोर तपस्या बंद कर दी और अपने स्थान पर लौट आईं।
माँ ब्रह्मचारिणी की कथा का सार
मां ब्रह्मचारिणी की इस कथा का सार यह है कि व्यक्ति को विपरीत परिस्थितियों में भी कभी नहीं घबराना चाहिए। बल्कि इसका डटकर सामना करना चाहिए. मां ब्रह्मचारिणी की कृपा से ही भक्तों को सभी कार्यों में सफलता मिलती है।